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पतरातू घाटी: झारखण्ड की एक अनोखी घाटी ( Patratu Valley, Ranchi)

ठण्ड का मौसम, सुबह की चमकती धुप, हलकी-हलकी चलती सर्द हवाएं, सर्पीले रास्ते, घाटियाँ, ऊँची-नीची पहाड़ियां, वक्रनुमा पानी का किनारा - इन शब्दों का प्रयोग मैं किसी हिमालयी क्षेत्र की ओर इशारा करने के लिए नहीं कर रहा, बल्कि अपने ही राज्य झारखण्ड के बारे बता रहा हूँ। सच तो यह है की दूर का ढोल सुहावन होने के कारण अक्सर हम नजदीकी नजारों को कोई महत्व नहीं देते हैं, और फलस्वरूप आस पास के बारे ज्यादा नहीं जान पाते। झारखण्ड में राँची से उत्तर की ओर 35 किलोमीटर दूर की एक घाटी इसी प्रकार के अछूते प्राकृतिक सौंदर्य का शानदार उदाहरण है।

पतरातू घाटी - एक नजर 

  जमशेदपुर से राँची होते हुए 165 किलोमीटर दूर पतरातू घाटी की सैर करने के लिए पहले तो मैंने अपनी बाइक से ही जाने का निश्चय किया था, लेकिन बाद में इस कार्यक्रम को जरा पारिवारिक विस्तार देकर एक रात रांची में ही गुजार लेना ठीक समझा। लम्बे अरसे बाद राँची की ओर जाने का कार्यक्रम बन रहा था, जमशेदपुर से शाम की बस पकड़ कर 130 किलोमीटर दूर राँची आ गए। समुद्र तल से जमशेदपुर सिर्फ 450 फीट की ऊंचाई पर है, जबकि राँची 2100 फीट पर, इसीलिए दिसम्बर के आखिरी हफ्ते यहाँ ज्यादा ठण्ड थी। 
  1. चांडिल बाँध - जमशेदपुर के आस पास के नज़ारे (Chandil Dam, Jharkhand)
  2. पारसनाथ: झारखण्ड की सबसे ऊँची चोटी  (Parasnath Hills, Jharkhand)
  3. एक सफर नदी की धाराओं संग (River Rafting In The Swarnarekha River, Jamshedpur)
  4. कुछ लम्हें झारखण्ड की पुकारती वादियों में भी (Dalma Hills, Jamshedpur)
  5. झारखण्ड की एक अनोखी घाटी ( Patratu Valley, Ranchi)
  6. चाईबासा का लुपुंगहुटू: पेड़ की जड़ों से निकलती गर्म जलधारा (Lupunghutu, Chaibasa: Where Water Flows From Tree-Root)
  7. हिरनी जलप्रपात और सारंडा के जंगलों में रमणीय झारखण्ड (Hirni Falls, Jharkhand)
  8. दशम जलप्रपात: झारखण्ड का एक सौंदर्य (Dassam Falls, Jharkhand)
  9. क्या था विश्वयुद्ध-II के साथ झारखण्ड का सम्बन्ध? (Jharkhand In World War II)
  10. जमशेदपुर में बाढ़ का एक अनोखा नमूना (Unforeseen Flood in Jamshedpur)
  11. नेतरहाट: छोटानागपुर की रानी (Netarhat: The Queen of Chhotanagpur)
  12. किरीबुरू: झारखण्ड में जहाँ स्वर्ग है बसता (Kiriburu: A Place Where Heaven Exists)
       अगली सुबह राँची के कांके रोड स्थित चांदनी चौक से हमने पतरातू जाने वाली बस पकड़ी। पतरातू थर्मल पॉवर स्टेशन के कारण पतरातू पहले से ही प्रसिद्द है, साथ ही प्राकृतिक सुन्दरता भी अद्भुत है।  एक समय ऐसा भी था जब राँची-पतरातू मार्ग पर अँधेरा होने के बाद लोग जाने से डरते थे। पतरातू के घाटी वाले रास्ते से संघर्ष करते हुए लोग साइकिलों में कोयला लाद कर राँची में कारोबार करते थे। उस समय स्टेट हाईवे संख्या 2 पर  पिठोरिया से आगे जाना ही नहीं चाहते थे, पर अभी का माजरा बदल चुका है। सड़कों की स्थिति देखने से लग रहा था की झारखण्ड बनने के बाद दो ही काम तो मुख्यतः हुए है - सड़कों का निर्माण और जमीन की खरीद-बिक्री में उछाल।

 खैर, सेमल, बांस, साल और सखुए के जंगलों से गुजरते हुए राँची से पंद्रह-बीस किलोमीटर बाद पतरातू घाटी का इलाका शुरू हुआ। सड़कों ने घुमावदार रुख अख्तियार करना शुरू किया। माध्यम गति से उंचाई बढ़ रही थी, जगह-जगह लोग उतर कर घाटी का आनंद ले रहे थे। इतनी घुमावदार सडकों का झारखण्ड जैसे राज्य में होना आश्चर्यजनक ही है। एक ही रोड के नीचे दो-तीन और वक्रदार रोड दिख रहे थे, मानो ये एक ही रोड ना होकर अलग अलग हों। समूची घाटी का ड्रोन कैमरे से लिया गया उपरी दृश्य काफी अद्भुत है। यह घाटी किसी भी हिमालयी घाटी से कम नहीं है चाहे वो गंगटोक-नाथुला हो या रक्सौल -काठमांडू। मैंने भी कुछ देर यहाँ रुक कर नजारों को कैद कर लिया।

     घाटी से मात्र चार किलोमीटर आगे ही पतरातू बाँध है, जिसे नलकरी नदी के पानी के संचय हेतु बनवाया गया था। इसे भारत के महान इंजिनियर श्री मोक्षगुन्दम विश्वेश्वर्या ने डिजाईन किया था। यह भी दिलचस्प है की इस डैम के नीचे एक सुरंग भी है, जो पतरातू के दो गांवों लब्गा और हरिहरपुर को जोडती है, लेकिन सुरक्षा कारणों से इसे बंद रखा गया है। झील के किनारे किनारे मछलियों के झुण्ड आसानी से देखे जा सकते हैं। पिकनिक का मौसम भी था, इसलिए भीड़ भी अच्छी खासी ही थी। नौका परिचालन भी कुछ बरसों पहले ही शुरू हुई है। झील का नीलापन बिलकुल सागरीय एहसास दे रहा था। 

         इस झील के आस-पास सिर्फ कुछ गिने-चुने रेस्तरां ही उलब्ध थे। एक रेस्तरां वाले ने कहा की यहाँ इसी डैम से पकड कर पकाए गये मछली उपलब्ध हैं, यह तो कमाल ही हो गया। इसी रेस्तरां में भोजन करने के बाद सफ़र का अंत हो चला। इस रूट में बसें जरा कम चलती है, सिर्फ शाम के पांच बजे तक है। सो जल्दी जल्दी सफ़र ख़त्म कर वापसी के लिए बस पकड़ लिए और इस बार तो कौतुहल वश बस के फ्रंट सीट पर बैठ कर पुरे घाटी का वीडियोग्राफी भी किया, जिसमे ड्राईवर ने भी मेरा भरपूर सहयोग किया। भविष्य में पतरातू घाटी पर फिल्म सिटी बनाये जाने की भी योजना है, लेकिन कुछ नागपुरी फिल्मों की शूटिंग काफी पहले से ही होती आ रही है।

  अब एक नजर तस्वीरों पर-












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Comments

  1. क्या गज़ब संयोग है प्रजापति जी ! कल ही के दैनिक जागरण के यात्रा पेज में पतरातू घाटी के विषय में थोड़ा सा पढ़ा और आज आपका विस्तृत ब्लॉग पोस्ट मिल गया पढ़ने को ! शानदार चित्र लिए हैं आपने !

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    1. धन्यवाद योगी जी . वो दैनिक जागरण वाला पेज शायद मैंने भी देखा था .

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  2. सच में राम जी सुन्दर घाटी है पतरातू । सड़के भी शानदार लग रही हैं । सुन्दर चित्र ।

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    1. जी हाँ प्रदीप त्यागीजी यह प्रकृति का दिया झारखण्ड को एक अनमोल तोहफा है है .

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  3. यह घाटी किसी भी हिमालयी घाटी से कम नहीं है चाहे वो गंगटोक-नाथुला हो या रक्सौल -काठमांडू।
    सही कहां फोटो देखकर लग भी रहा है, बेहतरीन पोस्ट।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका सचिन जी

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  4. शानदार प्रजापति जी । कुछ और चित्र लगाने थे । इतने में मन नही भरा ।

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  5. शानदार प्रजापति जी । कुछ और चित्र लगाने थे । इतने में मन नही भरा ।

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  6. R d ji लगता ही नहीं के यह झारखंड की सड़क है फ़ोटो बढ़िया है

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    Replies
    1. जी हाँ विनोद जी पहली बार में तो मुझे भी विश्वास नही हुआ था की झारखण्ड में ऐसी सड़क भी हो सकती है। धन्यवाद।

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  7. सुन्दर नज़ारों से भरी पतरातू बाँध की यात्रा ।समुद्र के किनारे जैसा अहसास।

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  8. शानदार और दिलचस्प ब्लॉग है। इस जानकारी को साझा करने के लिए धन्यवाद, क्योंकि यह हर किसी के लिए बहुत मूल्यवान और उपयोगी ब्लॉग है। सुंदर और अद्भुत चित्रों को साझा करने के लिए धन्यवाद।

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