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Showing posts from 2015

कैसा रहा मेरा 2015 का यात्रानामा?

साल 2015 कुछ ही दिनों में हमसे विदा लेने वाला है और जल्द ही इतिहास के पन्नों में गुम हो जायेगा। यात्रा का शौकीन तो मैं हमेशा से था ही, लेकिन इस वर्ष आखिर क्या ख़ास किया मैंने? ब्लॉग जगत में प्रवेश के साथ ही यात्रा का मजा दिन दूनी और रात चौगुनी गति से बढ़ता चला गया, साथ ही देशभर के यात्रा ब्लागरों के साथ बढ़ती घनिष्ट मित्रता दिन प्रति दिन और प्रगाढ़ होती चली गयी। इस वर्ष कुल छह यात्राओं में मैंने 20 दिन होटलों में और 8 दिन ट्रेन में गुजारे। तो पेश है इस वर्ष के यात्रानामा-2015 पर एक नजर- (1) शुरुआत हुई जनवरी महीने में

वो सबसे नजदीकी टापू और गंगा का समंदर में समा जाना (Sagar Island, Gangasagar)

कहा जाता है की भारत नदियों का देश है, जिनमें गंगा सर्वप्रमुख है। हिमालयी कंदराओं से उत्पन्न होती, हजारों मोड़ और वलय लेती तथा इसके किनारे बसे शहरों के लाखों-करोड़ों लोगों को जीविका देती इस गंगा का सागर से मिलन एक बहुत ही दिलचस्प तरीके से होता है दोस्तों। जी हाँ आज मैं आपको सैर कराने ले जा हूँ पश्चिम बंगाल के सागर द्वीप की जहाँ पर गंगा और सागर का संगम देखना तो प्रकृति प्रेमियों को खूब भायेगा ही, साथ ही वहां तक पहुँचने के लिए जो  मार्ग है वो भी कर्मठ घुमक्कड़ों को खूब रास आएगा। एक और बात याद दिल दूँ की गंगासागर 1971 के भारत-पाक युद्ध का गवाह भी रह चुका का है, जिसमे शहीद होने वालों में अल्बर्ट एक्का का नाम शुमार है।                            तो पिछले हफ्ते मेरी यात्रा शुरू हुई जमशेदपुर से रेलमार्ग द्वारा कोलकाता और फिर कोलकाता के सियालदह से पुनः रेलमार्ग द्वारा काकद्विप नामक स्थान तक। काकद्विप में हुगली किनारे स्टीमर से नदी पार करने के लिए हरवुड पॉइंट ना...

नीलगिरि माउंटेन रेलवे, ऊटी (Nilgiri Mountain Railway: Ooty to Coonoor)

चल छैयां छैयां छैयां..... देखा ही होगा आपने कभी न कभी इस गाने के वीडियो को। एक छुक छुक करती ट्रेन पर इसकी थिरकाने वाली धुन कुछ बरसों पहले सभी के जुबाँ पर सुनाई पड़ती थी। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ ऊटी के नीलगिरि माउंटेन रेलवे या यूँ कहे ऊटी के टॉय ट्रेन की, जो ऊटी से कन्नूर होते हुए मेट्टुपलायम तक सैकड़ों वलयों, पुलों और गुफाओं से गुजरती हुई पहुँचती है। कन्नूर जाने के क्रम में मैंने भी इसी ऐतिहासिक टॉय ट्रेन वाले मार्ग को ही चुना। उदगमंडलम रेलवे स्टेशन 2004 में आये सुनामी के बाद पुनर्जीवित एक एकांत तट में कुछ पल (Chotavilai Beach, Tamilnadu) भारत का अंतिम छोर और वो टापूनुमा विवेकानंद रॉक  (Kanyakumari, India) नीलगिरि माउंटेन रेलवे, ऊटी  (Nilgiri Mountain Railway: Ooty to Coonoor) ये हंसी वादियाँ आ गए हम कहाँ- ऊटी (Romance of Ooty) इस ऐतिहासिक ट्रेन की शुरुआत   सन 1908 अंग्रेजों द्वारा की गई, इनमे से कुछ तो आज भी भाप इंजन से ही चल रहे हैं। टॉय ट्रेन का सफर करने के लिए या तो आप ऑनलाइन IRCTC से टिकट बुक कर सकते हैं या फिर काउंटर पर ही जनरल टिकट ले सकते ह...

ये हंसी वादियाँ आ गए हम कहाँ- ऊटी (Romance of Ooty)

बात अगर हसीं वादियों की की जाय तो सिर्फ हिमालयी चोटियाँ ही इनमें शुमार नहीं हैं, बल्कि दक्षिण भारतीय चोटियों का सौंदर्य भी बिल्कुल ही अनूठा है। तमिलनाडु के नीलगिरि पर्वतश्रेणी के ऊटी एवं कन्नूर भी प्रकृति के ऐसे ही सुंदरता का बखान करते हैं।                                        कोयंबटूर से 80 किमी की यात्रा कर ज्यों ही हमने समुद्रतल से 7000 फिट की ऊंचाई पर उदगमंडलम या ऊटकमण्ड या ऊटी की फ़िजा में साँस लेना शुरू किया, तन-मन में एक ताजगी सी कौंध गयी। जून के महीने में भी शाम को यहाँ जबरदस्त ठण्ड थी। रात को होटल से बाहर जब हम चले तो जून में भी पूस की रात का एहसास हो चला। ऊटी झील: एक अलौकिक सौंदर्य 2004 में आये सुनामी के बाद पुनर्जीवित एक एकांत तट में कुछ पल (Chotavilai Beach, Tamilnadu) भारत का अंतिम छोर और वो टापूनुमा विवेकानंद रॉक  (Kanyakumari, India) नीलगिरि माउंटेन रेलवे, ऊटी ...

आईये जानें आखिर कैसी होती है गोवा की नशीली शाम (Goa Part IV)

ये शाम मस्तानी.... मदहोश किये जा.... मुझे डोर कोई खींचे जी हाँ गोवा की शाम कुछ ऐसे ही झूमने और नाचने को मजबूर करेगी आपको। ब्लू पानी, चर्च, कोको ट्री ये सब तो भई दिन के नजारे हैं। यहाँ तो शामें भी काफी नशीली और रंगीन हुआ करती हैं! जैसे ही दिन ढलता है, गोवा डूब जाता है एक अलग ही दुनिया में। मयख़ाने के उठे हुए शटर में रसिकों की भीड़ और डिस्को की गूँज से एक हसीं शाम का आगाज होने लगता है।  ट्रेन की हेराफेरी जिसने दिया हमें पहली उड़ान का आपातकालीन  मौका..मौका…(Goa Part I) गोवा के कुछ मनोहारी समुद्रतट (Goa Part II) गोवा के कुछ ऐतिहासिक पन्ने (Goa Part III) आईये जानें आखिर कैसी होती है गोवा की नशीली शाम (Goa Part IV) गोवा के कड़वे अनुभव (Shock at Vagatore Beach, Goa ) एक ऐसी ही हंसी शाम हमने गुजारी   पणजी में। हर शाम को मांडवी नदी में यहाँ होता है क्रूज में सैलानियों की मौज मस्ती। तो बस फिर हमने भी टिकट कटाया और शुरू हो गया एक नया रोमांच। एक छोटे से स्टीमर के अंदर थे करीब सौ-डेढ़ सौ लोग और हर कोई डिस्को की धूम में मस्त था।   अचानक छत पे चढ़ कर सभी बगल वाले क्रू...

गोवा के कुछ ऐतिहासिक पन्ने (Goa Part III)

क्या गोवा का नाम सुनते ही आपके मन में सिर्फ नारियल पेड़ और समुद्र तटों का ही ख्याल आता है? गोवा का एक अन्य ऐतिहासिक पहलु भी है जिसे आप वहां की गिरिजाघरों और स्मारकों में महसूस कर सकते हैं। लगभग 450 वर्षों तक पुर्तगाली साम्राज्य रहने के यहाँ अनेक गवाह मौजूद हैं। सबसे पहले आपको ले चलूँगा फोर्ट अगोड़ा (Fort Aguada) । फोर्ट मतलब किला और  ट्रेन की हेराफेरी जिसने दिया हमें पहली उड़ान का आपातकालीन  मौका..मौका…(Goa Part I) गोवा के कुछ मनोहारी समुद्रतट (Goa Part II) गोवा के कुछ ऐतिहासिक पन्ने (Goa Part III) आईये जानें आखिर कैसी होती है गोवा की नशीली शाम (Goa Part IV) गोवा के कड़वे अनुभव (Shock at Vagatore Beach, Goa ) अगोडा मतलब  पानी। 17 वीं सदी में अरब सागर के सिंक्वेरियम तट पर बना यह किला मराठों और डचों से बचने के लिए मांडवी नदी के उद्गम पर ही बनवाया गया था।  अभी भी यह अच्छी अवस्था में है और पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है।         गिरिजाघरों की बात अगर की जाय तो आईये ओल्ड गोवा में। 15वीं सदी में निर्मित संत कैथेड्रल चर्च एशिया ...